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व्याख्यान की प्रस्तावना
उत्पत्ति की पुस्तक
हमारा मन और परमेश्वर का मन अलग हैं। यीशु से मदद पाने के बजाय जब हम खुद से करने की ज़िम्मेदारी लेते हैं तो अंत मे हम अपने मन को अक्सर थका हुआ और बोझभरा महसूस करते हैं। ऐसा तब होता है जब हमारे मन को परमेश्वर के मन को पाये बिना खुद से कुछ करना होता है | उत्पत्ति की पुस्तक के वचनो के द्वारा आप परमेश्वर के मन के साथ एक मन होने के लिए वापस लौट सकते हैं | यदि आप प्रभु को सौंपते हैं, तो वह निश्चित रूप से मदद करते है । सबसे अच्छी बात यह है कि खुद को प्रभु को सौंपना है। आपके विचारों और मनो को पूरी तरह से नकारने और खाली करने के बाद उत्पत्ति मे दिए गये उसके वादे के अनुसार आप परमेश्वर से अगुवाई पाते हुए आशिषीत जीवन जीने का अनुभव कर सकते हैं | आपका परमेश्वर और उसके वादे पर विश्वास करके इसे प्रभु पर छोड़कर आगे बढने के बाद आपके पास मन मे सामर्थ्य पाने के लिए किमती समय होगा |